Saturday 7 May 2016

बाल विवाह

छोटी सी उम्र में परणाई रे बाबोसा , ये राजस्थान का लोक गीत है। ये बाल विवाह से संबंधित है और इसे  वर्तमान में कई राज्यों में देखा जा सकता है। राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । बाल विवाह  का सम्बन्ध आमतौर पर भारत के कुछ समाजों में प्रचलित सामाजिक प्रक्रियाओं से जोड़ा जाता है, जिसमें एक युवा लड़की (आमतौर पर 15 वर्ष से कम आयु की लड़की) का विवाह एक वयस्क पुरुष से किया जाता है। बाल विवाह की दूसरे प्रकार की प्रथा में दो बच्चों (लड़का एवं लड़की) के माता-पिता भविष्य में होने वाला विवाह तय करते हैं। इस प्रथा में दोनों व्यक्ति (लड़का एवं लड़की) उनकी विवाह योग्य आयु होने तक नहीं मिलते, जबकि उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है। कानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। मैं  राजस्थान के बाडमेर जिले के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। इस गाँव में अठारह साल के बच्चे को दुल्हन मिल जाती है और कहा जाये तो एक मुसीबत मिल जाती है। एक बार मैंने अपने गाँव के एक बुजूर्ग से पूछा कि लड़कियों की कम उम्र में शादी क्यों की जाती है तो उनका जबाव सुनकर मैं अवाक् रह गया। उन्होंने कहा कि लड़की पराया धन होती है और इस तरह इन्हें कब तक अपने घर में रखोगे।  लड़कियों के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं है , उन्हें घर का काम  अच्छे से आना चाहिए। ऐसे कई गाँवों में लोगों के दिलों दिमाग  में  अशिक्षा एवं अन्धविश्वास  घर किये हुए है। जहाँ लड़कियों को कम रुतबा दिया जाता है।  एक बार मैं अपने चाचा के बेटे की बारात में गया , तो मैंने वहां  देखा कि काफी बुजुर्ग एक व्यक्ति की पीठ थपथपा रहे है। दोस्तों , उसका कारण कुछ और नहीं , बल्कि अधिक दहेज़ देना था। 
एक बार हमारे गाँव में एक वृद्ध आदमी की मृत्यु के पीछे क्रिया कर्म होने के बाद एक ही परिवार की छ लड़कियों की शादी कर दी और उनमे सबसे छोटी लड़की की उम्र मात्र सात वर्ष थी। 
इस तरह कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते, अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं और कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर गरीबी का कारण बनता है। कम उम्र में शादी होने से लड़की यौन शोषण का शिकार होती है और कम उम्र में बच्चे  पैदा होने से मातृ मृत्यु  दर बढ़ती जा रही है। 
बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है। समाज के कई वर्गो में कोख में ही बच्चे की सगाई तय हो जाती है। राजस्थान में जाट समुदाय में आज भी बाल विवाह का प्रचलन जोरों पर है। वहां बच्चों की शादी थाली में बिठाकर यानि कि पांच साल से काम उम्र में ही कर दी जाती है।  तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्‍य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इस लिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी । वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं । कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर लेता है और फिर वह बड़ा होकर बचपन में  किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्‍नी से तलाक ले लेता है । गाँवों में लोगों को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता न रहकर अपनी इज़्ज़त की चिंता रहती है। छोटी ही उम्र में शादी कर लड़कियों का भविष्य अंधकार में डाल दिया जाता है। कई बार ऐसे मामले सामने आते है जिसमे लड़की को ससुराल पक्ष द्वारा कई कारणों को लेकर परेशान किया जाता है और वह लड़की अशिक्षित होने की वजह से विरोध नहीं कर पाती और आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है क्योंकि उनके माँ बाप भी यही सलाह देते है कि बेटा , अगर मार भी सहनी पड़े तो भी कोई गम नहीं , लेकिन कभी भाग कर वापस मत आना , नहीं तो समाज में हमारी बेज़्ज़ती हो जाएगी। कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर लेता है और फिर वह बड़ा होकर बचपन में  किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्‍नी से तलाक ले लेता है । विवाह के पश्‍चात् माँ - बाप कन्‍या को शिक्षा से वंचित कर देते है और उस कन्‍या के लिए जीवन नर्क के समान हो जाता है । उनके अनुसार अगर लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी हुई तो वह माँ बाप की सेवा नहीं करेगी।  । जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है । वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है । लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता । बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । इसलिए  समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । क्योंकि लड़की ही वंश का पालन करती है और उसका शिक्षित होना , आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए बेहद जरुरी है। आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्‍म करने के लिए जागरूक करना होगा । यदि किसी का कोई भी साथी इससे कम आयु में विवाह करता है, तो वह विवाह को अमान्य/ निरस्त घोषित करवा सकता/सकती है। 

Monday 25 April 2016

जल संकट

पिछले  काफी दिनों से हमारे देश के अखबारों में एक खबर काफी सुर्खियों में है। .वह है सूखे की समस्या।सर्दियों में हालत कुछ सामान्य रहती है लेकिन जैसे जैसे गर्मियां  आती हैं ,पारा चढ़ने के बाद यह समस्या बढ़ने लगती है।  आज हमारे देश के एक दर्जन  राज्य सूखे की चपेट में है। जहाँ पीने के लिए बाहर से पानी मंगवाया जा रहा  है। आये दिन लोग सूखे से परेशान होकर आत्महत्या करते है। कल बैंगलोर के एक किसान ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली। क्योंकि सूखे की समस्या से कृषि नहीं हो पा रही है जिससे किसानों  के पास खाने को अनाज नहीं है तथा साहूकारों का ऋण नहीं चुका पाते है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल में किसानों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्याएं अब अखबारों की सुर्खियां भी नहीं घेरतीं। लोग सूखे की समस्या से परेशान होकर शहर की ओर पलायन कर रहे है। देश का अन्नदाता आज गाँव को छोडने व दुनिया को छोड़ने के लिए मजबूर हो गया है।  पिछले दिनों जब में गाँव गया तब मैंने वहां देखा कि एक नलकूप पर लाल रंग किया हुआ था .और गाँव के तालाबों की जगह अब लोगों के घर बने हुए है। देश की सबसे पवित्र नदी को आप कभी बनारस में आकर देखिएगा। आपको उसी पवित्र गंगा नदी के पानी पर घिन आएगी। गंगा की सफाई के लिए दो हजार करोड़ का बजट घोषित किया गया लेकिन उसका दस प्रतिशत भी उपयोग नहीं हुआ है। 
अगर प्रधानमंत्री जी बनारस के घाटों का दौरा करते है तो उसी पूर्व निर्धारित घाट के आस पास की सफाई करवा ली जाती है।  आज देश की प्रत्येक नदी प्रदूषण की चपेट में है।   लोग पानी का दुरूपयोग करते है जिसका नतीजा आने वाले दिनों में  देखने को मिलेगा। आज महाराष्ट्र के लातूर जिले में लोग पानी का संकट झेल रहे है और पीने के पानी के लिए सात घंटे लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है। वहीं दूसरी जगह लोग पानी की कीमत को तवज्जो नहीं दे रहे है। दिल्ली में कभी मेट्रो से जाते वक्त  यमुना को देखिएगा क्योंकि वहां अब यमुना नदी की जगह एक नाले ने ले ली है। 
पानी की कीमत का अंदाजा नहीं लगा पा रहे भारत के लोगों ने अगर पानी का मोल जल्द ही नहीं समझा तो वर्ष 2020 तक देश में जल की समस्या विकराल रूप ले सकती है।
इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि कभी दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह चेरापूंजी में भी अब लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है। 
तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़े जाने की आशंकाओं के बीच भारत में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है नतीजतन कई राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। पानी के इस्तेमाल के प्रति लोगों की लापरवाही अगर बरकरार रही तो भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।एक और तो गांवों में साफ पानी नहीं मिलता तो दूसरी ओर, महानगरों में वितरण की कामियों के चलते रोजाना लाखों गैलन साफ पानी बर्बाद हो जाता है। शहरों  में पानी की किल्लत की एक और प्रमुख वजह है वाहनों की सफाई में पानी का बर्बादी। लोग हजारो लीटर पानी वाहनों की सफाई में बर्बाद कर देते है।   जल संकट ने भारत के कई राज्यों को अपनी चपेट में ले रखा है।  जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
 खेती में आज भी पानी का पारंपरिक ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है और इसमें नई तकनीकी और तौरतरीकों को नहीं अपनाया गया है।  नतीजतन बहुत बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद होता है।  जोहड़, तालाब, कुएं, बावली आदि पाट दिये गए हैं और बहुत बड़े पैमाने पर भवन निर्माण होने के कारण जमीन के भीतर पानी की स्वतः होने वाली आपूर्ति बंद हो गई है जिसके कारण भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।  पानी को लेकर आये दिन लड़ाई झगड़े की खबरें भी आती रहती हैं. लेकिन महाराष्ट्र के लातूर में पानी का संकट इस बार इतना गहरा गया है कि प्रशासन को यहां जल स्रोतों के आसपास धारा 144 का प्रयोग करना पड़ा है। 
 महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में लोग पानी की कमी की वजह से एक से ज़्यादा शादियां कर रहे हैं. जब एक पत्नी, बच्चे और घर संभालती है तो दूसरी पत्नी सिर्फ पानी लाने का काम करती है, क्योंकि महिलाओं को अपने घरों से कई किलोमीटर तक पैदल जाकर पानी लाना पड़ता है। 
 राजधानी दिल्ली तक में सभी को नल से पानी नहीं मिल रहा है, जिसकी वजह से जल माफिया का उदय हो गया है. वे किल्लत का सामना कर रहे लोगों को महंगे में पानी बेचते हैं। इसका कारण हम सब जानते है क्योंकि इसका कारण या वजह हम ही है।  इस पानी के संकट का निवारण भी हो सकता है अगर पानी का सही से उपयोग किया जाये। सरकार द्वारा सुख ग्रस्त इलाकों में नहरों से पानी पहुँचाया जाए। क्योंकि इसी तरह सूखे के हालात बने रहे तो देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाएगी। सरकार द्वारा जल के सरंक्षण से संबधित कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए जिसमे लोगों को जल संकट के प्रति जागरूक किया जाये। बारिश के पानी का एकत्रण किया जाना चाहिए। 

Saturday 9 April 2016

सफलता एक चुनौती

सफलता एक चुनौती
कल में पुराने अखबारों को पलट ही रहा था कि तभी अचानक मेरी नज़र एक खबर पर पड़ी जिसका शीर्षक था- आईएएस की परीक्षा पास न होने पर एक शख्स ने की आत्महत्या।
लोग हजारों सपने लिए घर से निकलते है और दुनिया को भूल कर रात दिन एक कर तैयारी में जुट जाते है। उनका एक ही सपना रहता है -कुछ कर दिखाना। हमेशा दिमाग में एक ही ख्वाब पलता है कि बस अब एक साल और फिर पूरी दुनिया अपनी मुट्ठी में।
जब आपके अरमानों को रंग लगते हैं तो लगता है कि सारी दुनिया आपके साथ है , हर चीज से अच्छा लगता है – हवाएं , पत्ते , बारिश , बाज़ार , दोस्त , सफ़र , खाना – पीना आदि आदि ……सब कुछ अपने करीब लगता है और सभी में एक अर्थ-सा महसूस होता है ! फिर वक़्त बदलता है तो ना जाने अचानक सब कुछ बदल जाता है और पाले हुए ख्वाब अनजान प्रतीत होने लगते है क्योकि उन्हें असफलता हाथ लग जाती है। और सपनो का घर एक ही पल में बिखर जाता है। शायद इसी उधेड़बुन में सहेजने -बिखरने के बीच ही ये जिन्दगी नए मापदंड बना देती है। जो सभी के साथ आज तक होता है। जब बहुत करीब से आप देखते हैं तो लगता है कि उस ख्वाब को स्थायी मानने की गलती ही तकलीफ देती है। हम सभी स्थितप्रज्ञ तो नहीं हो सकते हैं मगर इस अहसास से जिन्दगी ज्यादा खूबसूरत हो जाएगी कि बुरे वक़्त में अच्छे पलों को यादों से निकालकर आँखों के सामने दुबारा ज़िंदा कर लूंगा और ख़ुशी के हर पल को अपने खजाने में संजो लूँगा। । जिंदगी कई बार तसल्ली और कई बार ग़लतफ़हमी में रहना चाहती है। ये जिन्दगी तो बस यकीन की जंग है। लेकिन एक बार असफलता हाथ लगने पर उनकी हिम्मत टूट जाती है और आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते है। लेकिन आत्महत्या करने वाले को एक बार सोचना चाहिए की हम मनुष्य है , किसी देवत्त्व या स्थितप्रज्ञता को धारण करने वाले विशिष्ट नहीं है।इसीलिए यकीनन असफलता निराश करती है परन्तु यदि यही असफलता
हमारे सारे उत्साह, उम्मीद और सपनों का गला घोंट कर स्थाई तौर से हम पर हावी हो जाए और जिंदगी भर का मलाल दे जाए तो समझदारी नहीं है। माँ बाप की अपने बेटे के सपनो से कितनी आशाएं रहती है और वही बेटा असफलता से हार कर दुनिया को अलविदा कह देता है। जीवन रूकता नहीं है। ध्यान रहे कि निराश होकर घर बैठने वाले कभी किसी के लिए उदाहरण नहीं हो सकते हैं , किसी की जिंदगी में उमंगे पैदा नहीं कर सकते हैं और उनसे कोई सकारात्मकता नहीं ली जा सकती है।। अगर आप इस तरह की जिंदगी जी सकते हैं तो किसी को भी दोष नहीं दीजिएगा। क्योकि इस तरह कई लोग दुनिया में आये और अपनी पहचान को इसी तरह छुपा कर चले गए। अगर आप इसी तरह जिंदगी का गला घोंट देंगे तो दुनिया आपको थोड़े दिन ही याद रखेगी और अगर आप सफल व्यक्ति बन गए तो पूरी दुनिया आपके कदमों में होगी। कई बार निराश साथी पूछते हैं कि उनमें और किसी कामयाब में क्या फर्क है। बस यही फर्क है – वो ‘नीड़ का निर्माण फिर से ‘ वाले सिद्धांत पर काम करते हैं। जिस तरह पंछी आंधी तूफान से बिखरे हुए अपने नीड़ को बिना थके हारे फिर से बनाने में लग जाता है उसी तरह मनुष्य को भी असफलताओं और बाधाओं से बिना घबराएं फिर से जुट जाना चाहिए। उदाहरण बनने के लिए बस एक और प्रयास की आवश्यकता है – आत्मावलोकन करने के बाद कामयाबी के लिए किया गया गंभीर प्रयास। इसलिए थक हर कर बैठने से अच्छा है कि एक बार और प्रयास किया जाये। एक असफलता से खुद की जिंदगी को निराशा के अँधेरे में मत डालिए। अपनी निराशा के अँधेरे में एक उम्मीद की तीली जलाइए। कुछ अपने , कुछ सपने याद करें और नए सिरे से प्रयास करें। क्योकि वक्त रेत की तरह हाथ से फिसल जाता है। हमने जन्म दूसरों की कामयाबी पर ताली बजाने के लिए नहीं लिया है और ना ही जिंदगी का गला घोंटने के लिए। कई लोग विपरीत परिस्थतियों में भी हार नहीं मानते है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि सब कुछ भुला कर फिर से उसी काम में लग जाना। क्योकि कामयाबी पहाड़ पर रखे हुए उस दीये की तरह है जो दूर से ही दिखाई देता है और ये कामयाबी एक न एक दिन जरूर हाथ लगेगी और तुम
दुनिया के सामने एक मिशाल बन जाओगे। हजारों लोगों की भीड़ में तुम्हारा नाम गुंजेगा और तुम दुनिया के हीरो बन जाओगे। दुनिया के आगे पीढ़ियों तक उदाहरण बने रहोगे। सिर्फ एक कामयाबी सब परेशानियां भुला देगी। क्योकि किसी के सच कहा है कि वक्त सब सही कर देता है। इसलिए असफलताओं से कभी निराश नहीं होना चाहिए बल्कि डट कर सामना करना चाहिए और हर पल मुस्कुराते हुए रहना चाहिए। हर पल मुस्कुराते रहना कठिन तो हो सकता है पर नामुमकिन नहीं है। इसलिए हमेशा रणबीर कपूर की फिल्म ये जवानी है दीवानी के शब्दों को याद रखिये-
मैं दौडना चाहता हूँ मैं चलना चाहता हूँ.. मैं गिरना भी चाहता हूँ लेकिन मैं रुकना नहीं चाहता….
क्योकि चलते रहना ही जिंदगी है।
सफलता के लिए ये ४ लाइन है -
दुनिया का रिवाज पुराना है
पतझड़ को तो जाना है
अपनी फौलादी बाहें फैला
चुनौतियों को गले लगा
मंजिल तेरे कदम चूमेगी
धरती तो यूं ही घूमेगी
तुम को कर दिखलाना है
किसी ने सच कहा है की अगर आप सोचते हैं कि आप कर सकते हैं – तो आप कर सकते हैं। अगर आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते हैं- तो आप नहीं कर सकते हैं और किसी भी तरह से …आप सही हैं.